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एक मंथली मैगजीन के तौर पर वाॅचडाॅग की शुरूआत 4 साल पहले हुई। इस दौरान मैगजीन को सरकारी विज्ञापनों पर ही पूरी तरह आश्रित रहना पड़ा। जैसे-तैसे सरकारी इमदाद के भरोसे सीमित दायरे में ही सही, मैगजीन छपती रही, इसमें कुछ मित्रों का सहयोग भी मिलता रहा। जैसे कि अक्सर होता है सत्ता-सिस्टम के खिलाफ खड़े होने की कीमत हर किसी को चुकानी पड़ती है, कम या ज्यादा। यही कीमत वाॅचडाॅग को भी चुकानी पड़ी है। अपने शुरूआती अंक से ही पत्रिका की कवर स्टोरी भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों की कारगुजारियों पर ही केन्द्रित रही, यह जानते-बूझते हुए भी कि जिन्दा रहने के लिए जरूरी रसद इन्हीं भ्रष्ट, लम्पट राजनेताओं-नौकरशाहों के रहमोकरम पर रिसता हुआ हम जैसों तक भी पहुंचती है, चाहे वह विज्ञापन के रूप में ही हो। जैसे कि मासिक पत्रिकाएं या फिर छोटे समाचार पत्र स्वभावतः सत्ता-सिस्टम को रास नहीं आते, जितना कि कारपोरेट मीडिया घराने। उनकी ताकत ज्यादा होती है, लिहाजा वे सत्ता-सिस्टम के नजदीक भी होते हैं और उसी अनुपात में धंधा भी करते हैं। अपने डेढ़ दशक के पत्रकारीय करियर के अनुभव से मैं आज इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस राज्य को लूटने-खसोटने में जितना रोल नौकरशाहों, नेताओं व माफिया लाॅबी का है, उससे कम अपराधिक गिरोहों की तरह काम कर रहे पत्रकारों की जमात का नहीं है। पत्रकारिता के नाम पर दलाली और ब्लैकमेलिंग का खेल इस राज्य में जोरों पर चल रहा है। मीडिया के नाम पर हनक दिखाने वाले कई ऐसे चेहरे हैं जो इस हदतक तक दलाली के दलदल में धंसे हुए हैं कि उन्हें अपने धंधे का चलाए रखने के लिए महिलाओं तक का उपयोग करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं हो रही है। कई तो ऐसे हैं जो चलता फिरता सेक्स रैकेट चला रहे हैं।
उत्तराखंड में सरकार जाने-अनजाने पूरी तरह इन्ही मीडिया दलालों, सेक्स रैकेटियरों को पालने-पोसने में लगी हुई है, उसे सरकार की कार्यशैली पर आलोचनात्मक नजर रखने वाले पत्रकार फूटी आंख नहीं सुहाते। यही स्थिति पूरे देश की है। जनता के जीवन से जुड़े असल मुददों पर मुख्यधारा के मीडिया में कुछ अपवादों को छोड़कर कहीं कुछ नजर नहीं आता। अगर कहीं दिखता भी है तो सरसरी तौर पर। यह जानते हुए भी कि इस तरह विलाप करने से कुछ होने-जाने की उम्मीद नहीं है, फिर भी मानता हूं कि ऐसे ही संकटों के बीच नई राह सूझती है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग करते हुए संस्थागत रूप से वैकल्पिक पत्रकारिता को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए प्रिंट मीडिया की दुनिया से तौबा करते हुए तय किया है कि अब इंटरनेट की आभासी दुनिया में प्रवेश किया जाय।। इसके लिए वर्डप्रेस के प्लेटफाॅर्म पर http://www.watchdognews.wordpress.com नाम से वेब ठिकाना तैयार किया है। एक ई-मैगजीन के तौर पर वाॅचडाॅग की कोशिश रहेगी कि सत्ता-सिस्टम की कमजोरियों को प्रखरता के साथ सामने लाया जाय। वाॅचडाॅग का मुख्य फोकस ऐसे सभी सवाल होंगे जो मुख्यधारा की मीडिया में जगह नहीं पाते हैं। वाॅचडाॅग का काम मात्र यही नहीं होगा जो परम्परागत तरीके से किसी भी मीडिया संस्थान या पत्रकार का होता है, बल्कि वाॅचडाॅग की भूमिका एक एक्टिविस्ट के तौर पर वे सभी मुददे जो सामने तो आते हैं, लेकिन सरकार की संवेदनहीनता की वजह से किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाते हैं ऐसे सवालों को अदालत की दहलीज तक ले जाना भी है। इसके लिए कुछ ऐसे मित्र जो पेशेवर तौर पर वकालत के पेशे में कार्यरत हैं, निःशुल्क अपनी सेवाएं देने को तैयार हैं, ताकि इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। वाॅचडाॅग के प्राथमिकता के मुददे कुछ इस तरह होंगे-

1-उत्तराखंड में जनपक्षीय पत्रकारिता को बढ़ावा देना।
2-सोशल मीडिया प्लेटफार्म का जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए उपयोग करना।
3 भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकायुक्त संस्था के गठन के लिए अभियान चलाना।
4- जनहित के मुददों को पीआईएल के रूप में अदालत तक पहुंचाना।

एक अहम सवाल जो कि आर्थिकी से जुड़ा हुआ है, को हल किए हुए इस तरह की किसी भी मुहिम को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए शुरूआती योजना यह है कि वाॅचडाॅग को उन सभी मित्रों, सहयोगियों और शुभचिंतकों के सहयोग से आगे बढ़ाया जाय जो कारपोरेट मीडिया के इस भनभनाते और दिमाग को सन्न करने वाले शोर के बीच भी वैकल्पिक रास्तों की शिददत के साथ तलाश के हामी हैं। इसके लिए प्रायोगिक तौर पर सहयोगियों की सूची तैयार की जा रही है जो वाॅचडाॅग को आर्थिक तौर पर मजबूती देने के लिए न्यूनतम मदद करने की स्थिति में हों। ऐसे सभी शुभचिंतकों से जो संस्थागत तौर पर वैकल्पिक मीडिया के समर्थक हैं, से उम्मीद करता हूं कि वे इस मुहिम में शामिल होकर वाॅचडाॅग की नीतियों व लक्ष्यों के निर्धारण में सहभागी बनेंगे।

दीपक आजाद
एडिटर
मो0 9410593337

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