गुटका माफिया के आगे नतमस्तक हरीश रावत!

hareshBy Deepak Azad/ WatchDog/  खनन और शराब माफिया से सांठगांठ के आरोपों में घिरे मुख्यमंत्री हरीश रावत इन दिनों एक तीसरे किस्म के माफिया के चरणों में नतमस्तक हुए दिखते हैं! राज्य में आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध लगे होने के बावजूद धड़ल्ले से गुटके का गोरखधंधा चल रहा है। विजय बहुगुणा के राज में राज्य में गुटके की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन आज भी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से हर साल  लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाले गुटके का गोरखधंधा बेरोकटोक यहां चल रहा है। सवाल यह है कि आखिर जब राज्य में गुटके पर प्रतिबंध है तो फिर किसकी शह पर गुटका माफिया धड़ल्ले से मौत का यह जहर बेच रहा है? गुटके के इस गोरखधंधे से जुड़ा एक सूत्र का कहना है कि प्रतिबंध के बावजूद गुटका बेचने के लिए उन्हें हर माह घूसखोरों को चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में हर माह करीब दस करोड़ का केवल गुटका ही बिकता है। खैनी और सिगरेट इसमें शामिल नहीं है। प्रतिबन्ध के बाद खुदरा मार्केट में गुटका एमआरपी से दुगने से ज्यादा मूल्य पर बेचा जा रहा है। इसके पीछे घूसखोरी को ही मुख्य कारण माना जा रहा है। यही स्थिति देहरादून में बड़ी मात्रा में बिकने वाले गोल्डन ब्रांड की खैनी की भी है। पांच रूपये एमआरपी वाली डोल्डन ब्रांड खैनी खुदरा मार्केट में आठ से नौ रूपये में बिक रही है। गुटके और तम्बाकू से न केवल कैंसर जैसी घातक बीमारी की चपेट में इसका सेवन करने वाले आ रहे हैं, बल्कि ब्लैक मार्केटिंग की वजह से राज्य को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। अगर इस गोरखधंधे से किसी का भला हो रहा है तो वो गुटका-तम्बाकू माफिया का हो रहा है या फिर सरकार में बैठे घूसखोरों का।

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