भ्रष्टाचार में घिरे डीजीपी, नैनीसार प्रकरण और चिरकुटाई करते अमर उजाला का शहीदी अंदाज

देहरादून। करोडों की जमीन के फर्जीवाड़े में घिरे डीजीपी बीएस सिद्वू और अमर उजाला में पिछले कुछ दिनों से युद्वु चल रहा है। शायद उत्तराखंड में यह पहला मामला है जब किसी व्यापक प्रसार संख्या वाले दैनिक अखबार ने विज्ञापन न मिलनेपर इस तरह किसी नौकरशाह के खिलाफ मोर्चा खोला है। जिस अंदाज में अमर उजाला रिटायरमेंट के दिन गिन रहे सिद्वूके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए खुद को शहीदी अंदाज में पेश कर रहा हैवह हैरान करने वाला तो है ही, साथ उसकी नियत पर पर सवाल भी उठाता है। मिसाल के तौर पर अमर उजाला की चिरकुटाईको सोमवार को ‘ डीजीपी पर सवाल, अंगुलियां सरकार पर’ शीर्षक से छपी खबर कोपढकर लगाया जा सकता है। अमर उजाला लिखता है‘ एक पाठक ने बताया कि सीबीआई ने एक मामले में जांच की अनुमति चाही थी, राज्य सरकार ने दी ही नहीं, वरना डीजीपी की तो कहानी कब की खत्म हो गई होती। इस लड़ाई में ही सही लेकिन अमर उजाला को चाहे था कि वह उस मामले पर रोशनी डालता जिसको लेकर सीबीआई ने जांच की अनुमति मांगी थी। खबरों की दुनिया के छल कपट को जानने-समझने वाले जान सकते हैं कि खबरों की ऐसी बुनावट के असल मायने क्या होते है। अमर उजाला की जनपक्षधरता को अगर आंकना है तो पिछले दिनोंनैनीसार मेंउत्तराखंड परिर्वतन पार्टी के नेता पीसी तिवारी के साथ धनपशु जिंदल केगुंडों ने जिस तरह मारपीट की, को लेकर अमर उजाला के रूख को लेकर किया जा सकता है। जहां मीडिया का बडे हिस्से ने खुलकर इस बात को सामने रखा कि आंदोलनकारियों के साथ जिंदल के लोगों ने मारपीट की, वहीं अमर उजाला अपनी खबरों मं मारपीट को ही संदिग्ध बताता रहा।

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