धनपशु मीरचंदानी के प्रेम में उत्तराखंड सरकार ने किया 12 मौतों का सौदा?

By Deepak Azad / Deharadun/  सालों पहले दिल्ली के उपहार सिनेमा में फिल्म देखने गए 59 महिलाए, बच्चे और छात्र-नौजवान असंल बंधुओं की मुनाफाखोरी से दहकती आग में चल बसे। पीडि़तों के परिजनों के लम्बे संघर्ष के बाद सुरक्षा मानकों से खिलवाड़ करने वाले असंल बंधुओं को जेल की सजा भी हुई, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने गिरफom parkashतारी के वक्त जेल में बिताए गए दिनों को ही सजा मानते हुए 60 करोड़ के जुर्मानें के साथ असंल बंधुओं को रिहा कर दिया। यह हमारी न्यायिकव्यवस्था का वह चेहरा है जिसका दिल रह-रहकर कभी सलमान खान जैसों के लिए धड़कता है तो कभी मुनाफाखोर असंल बंधुओं के लिए। यह तो सीधे-सीधे धन-दौलत के बल पर न्याय के पलड़े को धनपशुओं के पक्ष में करना जैसा है। अगर मान लें कि अंसल बंधुओं केपास जुर्मानें के लिए पैसा नहीं होता तो तब भी क्या इस देश की सर्वोच्च अदालत ऐसा फैसला सुनाती? खैर मुनाफाखोरों, धनपशुओं के प्रति यह सहानुभूति, वह चाहे राजनीति हो या फिर नौकरशाही सब जगह मौजूद है। जरा याद करें अपने उत्तराखंड में भी पांच साल पहले रूड़की में ओनिडा कंपनी के कारखाने में भी धनपशुओं ने ऐसा ही एक अग्निकांड को अंजाम दिया था, जिसमें 12 मजदूर ‘जलाकर’ मार दिए गए थे। तब भुवन चन्द्र खंडूड़ी राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और आज के हरीश रावत दिल्ली में मंत्री। दोनों ने ही घटनास्थल का दौरा कर मृतकों के परिजनों को न्याय का भरोसा दिलाया था, लेकिन आज इस पर कोई बोलने वाला नहीं है। इस बीच विजय बहुगुणा के राज में जब जून 2013 में यह राज्य आपदा की मार झेल रहा था, तब सरकार ने पूरी बेशर्मी के साथ इस अग्निकांड में आरोपी बनाए गए ओनिडा के मालिक जीएल मीरचंदानी को आरोपी की श्रेणी से न केवल बाहर कर दिया गया, बल्कि ओनिडा के कारखाना मैनेजर सुधीर महेन्द्रा से भी एफआइआर में दर्ज गंभीर धाराओं को हटा दिया गया। यह पूरा खेल करने वाला वही नौकरशाह ओम प्रकाश है जिसे हरीश रावत ने शराब सीडी की जांच का जिम्मा सौंपा है। यह पूरा खेल तब किया गया जबकि कोर्ट ने ओनिडा के मालिक के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किए हुए थे। जाहिर सी बात है कि ओम प्रकाश ने हजारों करोड़ की धन-दौलत वाली ओनिडा कंपनी के मालिक के खिलाफ फोकट में तो यह दरियादिली नहीं दिखाई होगी? इस दरियादिली के पीछे एक बड़ी डील को अंजाम दिया गया। सूत्र बताते हैं कि यह रकम तीस करोड़ के आसपास थी, जिसके बदले इस अग्निकांड को रफा-दफा कर दिया गया। इसमें विजय बहुगुणा और उनके पुत्र साकेत की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। चूंकि यहां मरने वाले सभी मजदूर थे, लिहाजा उनकी क्या औकात कि वे धनपशुओं के साथ उनकी मौत का सौदा करने वाले नेताओं और ओम प्रकाश जैसे नौकरशाहों के खिलाफ कुछ कह-बोल सकें? मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि यदि इस मामले की इमानदारी से पैरवी हो तो ओमप्रकाश और उनके मातहती चेलों का खाया-पिया देर-सबेर सब बाहर आने में देर नहीं लगेगी। क्या हरीश रावत, अपने इस प्रमुख सचिव और इस मामले में लीपापोती करने वाले दूसरे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई का साहस दिखा पाएंगे? क्या वे ऐसी इमानदार जांच करा सकते हैं जो इस कांड के गुनाहगारों को सजा दिला सके?

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