समाज कल्याण के घोटालेबाज पर मुख्यमंत्री मेहरबान

By Chandrashekhar Kargeti

बल #हरदा,
खाता ना बही जो सरकार करे वही सही…….

यह उत्तराखण्ड के जमीनी मुख्यमंत्री #हरीश_रावत जी का ही प्रताप है कि राज्य में समाज कल्याण विभाग के घोटालेबाज अधिकारीयों को गयी 26 जनवरी को उनके द्वारा पुरुष्कृत किया जाता है. मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें पुरुष्कृत ही नहीं किया जाता बल्कि घोटालों को अंजाम देने के एवज में उन्हें उनके मन माफिक राज्य में मलाईदार जगह पर पोस्टिंग भी दी जाती है, मुख्यमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐसे अधिकारियों को दिये गये पुरुष्कार के मायने भी शायद यही है.

राज्य के समाज कल्याण विभाग में पदस्थापित ऐसे अधिकारीयों के खिलाफ उनके घोटालों को लेकर अगर गलती से कभी शासन में कोई फाईल बन भी जाती है तो उस पर उतनी त्वरित गति से कार्यवाही नहीं हो पाती है जितनी त्वरित गति से हमेशा जिंदल जैसों को नैनीसार में दी जाने वाली भूमि आवंटन जैसे प्रकरणों की फाईल पर होता है !!

ऐसा नहीं है कि राज्य के मुख्यमंत्री इन सब घोटालों से वाकिफ नहीं है, उन्हें सब मालूम होता है, कार्यवाही इसलिए नहीं होती कि उन्ही के सरकार के मंत्रीयों से लेकर विधायकों तक में आपसी हिस्सा बाँट जो रहती है. ऐसे मामलों की फाईल को डस्टबीन में डालने के लिए विभाग में अपर सचिव और सयुंक्त सचिव और अनुभाग अधिकारी जैसे लोग होते ही है. बाकी जिसकी सीधी पहुँच दरबार में हो तो फिर निदेशक फिदेशक को कौन पूछ रहा होता है.

राज्य के दलित, गरीब,पिछड़े और महिलाओं के साथ खिलवाड़ के ये मामले मुख्यमंत्री के लिए चिंता और कार्यवाही का विषय इसलिये नहीं होते क्योंकि ऐसे मामलों पर जनआन्दोलन कभी नहीं होते हैं, और जब तक जनांदोलन ना हो तब तक उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की नींद टूटती भी नहीं है. बाकी फिर अगर कभी मामला ज्यादा तूल पकड़ भी जाए तो सरकार का संकट मोचक ईटीवी का छोरा एक्क्लुजिव इंटरव्यू के लिए मौजूद होता ही है, जो जनता के सवाल परदे पर ना लाकर अपने खयाली और सरकार के पक्ष के सवाल दिखा कर सरकार से इनाम ले ही लेता है.

सच में लोकतंत्र में कितनी निर्लज्ज होती है सरकारें और कितने बेशर्म होते हैं उनके मंत्री, विधायक और शासन में बैठे नकारा अफसर ! जो ऐसे घोटालेबाजों को भरपूर संरक्षण देते है. हम आप ग्याडू तो बस हिसाब लगाते रहे कि पेंशन का एक चेक कितने रूपये का होगा ? एक इतने का तो 6909 चेक कितने के ? इन सबके बीच ये अपना काम हर साल निर्बाध एंव बेखोफ रूप से करते ही रहते है, हाँ कभी खुंदकवश पकड में आ गये तो बचाने को शासन में आका बैठे ही होते है.

बल,
मजबूरों के हिस्से की इस लूट में ऊपर से नीचे तक सब हिस्सेदार होते हैं, मुख्यमंत्री से लेकर विभाग के निदेशक तक, बाबू से लेकर चपरासी तक, अगर इनमें से किसी एक की भी हिस्सेदारी नहीं है तो विभाग में ऐसे अधिकारीयों की मौज कैसे ?

                  लेखक चन्द्रशेखर करगेती की फेसबुक वाॅल से साभार

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