नैनिसार प्रकरण ः जनांदोलनों से बढ़ती अमर उजाला की वितृष्णा

By Rajiv Lochan Sah/Nainital/ नैनिसार प्रकरण पर कल 8 फरवरी को अल्मोड़ा में हुई रैली अदभुत थी. 1994 के राज्य आन्दोलन के बाद अल्मोड़ा में ऐसा जन सैलाब कभी नहीं उमड़ा. राज्य आन्दोलन के बाद हताश होकर घर बैठ गए अनेक पुराने दिग्गज इस रैली में थे तो उस युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि भी, जिसे हम अराजनैतिक मानते आये हैं. इस परिघटना में राज्य बनने के बाद पहली बार एक नए आन्दोलन की आहट सुनाई दे रही है. अब यह नेतृत्व के हाथ में है कि वह धैर्य, विवेक और समझदारी दिखा कर इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करे, इसे स्खलित न होने दे.
दिक्कत अख़बारों की है. हिंदुस्तान और जागरण के हल्द्वानी संस्करणों ने इस खबर को पहले पेज पर छपा है तो अमर उजाला ने जनांदोलनों के प्रति अपनी वितृष्णा की परंपरा को बनाये हुए रख बिलकुल ही लापता कर दिया है. यानी उत्तराखंड के सबसे अधिक प्रसार वाले अखबार के सिर्फ अल्मोड़ा के पाठक, जो शायद वैसे ही इस रैली की गूँज सुन चुके होंगे, इस खबर को पढ़ेंगे. यानी इन तीन अख़बारों के पाठकों के सिर्फ 25 प्रतिशत को ही नैनिसार प्रकरण की जानकारी होगी. इस तथ्य को फिलवक्त देहरादून में रह रहे मेरे भतीजे के फोन सही साबित किया, जब हिन्दुस्तान में कल की रैली की खबर पढ़ कर उसने पूछा कि यह नैनिसार मामला है क्या ?
तब इस आन्दोलन का विस्तार कैसे होगा ? राज्य आन्दोलन में इसका बिलकुल उल्टा था. मीडिया आज का एक बटे दस था, मगर पूरी तरह आन्दोलन के साथ था. इस राज्य को बर्बाद करने में जितनी बड़ी भूमिका बेईमान राजनेताओं की है, उससे कम लालची मीडिया के नहीं.
नैनिसार आन्दोलन को इन्हीं सीमाओं के साथ आगे बढ़ाना होगा.

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