जो शराब बिकवाता है वह देश का दुश्मन है

By Purushottam Asnora/नशा नही रोजगार दो आन्दोलन की 32 वीं वर्षगांठ
गैरसैंण,2 फरवरी/ आज के ही दिन अल्मोडा जिला के बसभीडा ग्राम से शराब के विरुद्ध उठी जंग ने उत्तराखण्ड में एक ऐतिहासिक आन्दोलन ‘नशा नही रोजगार दो‘ को जन्म दिया। उत्तराखण्ड में शराब को बुराई की हद तक घृणा करने वाले समाज में 6 ठें दशक तक बुराई और आतंक का रुप ले लिया था। सर्वोदयी कार्यकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों पर सशक्त आन्दोलन चलाकर नशे का प्रतिकार किया और बाध्य होकर उप्र सरकार को उत्तराखण्ड के पहाडी जिलों में नशाबन्दी लागू करनी पडी।
नशाबन्दी की तोड शराब माफिया ने तस्करी और आयुर्वेदिक दवाओं के नाम पर सुरा, संजीवनी सुरा, बायोटांनिक और भी कितने ही नामों से 45 प्रतिशत से अधिक एल्कोहल के जहर खुले आम बेचने प्रारम्भ कर दिए। कहना न होगा कि इन्हें बेचने और बिकवाने वाला माफिया सत्ता के भी दलाल थे।
दो फरवरी 1984 को बसभीडा में उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के बैनर तले नशा तंत्र के विरुद्ध आन्दोलन का निर्णय लिया गया जिसमें बडी संख्या में महिलाऐं भी थी। बसभीडा से प्रारम्भ आन्दोलन उत्तराखण्ड के गांव-गांव तक पहुंच गया। आन्दोलन के नारे थे-
जो शराब पीता है-वह परिवार का दुश्मन है।
जो शराब बेचता है-वह समाज का दुश्मन है
जो शराब बिकवाता है-वह समाज का दुश्मन है
शराब पीने वाले परिवार से दुश्मनी, बेचने वाले समाज से और बिकवाने वाले देश से दुश्मनी करते रहे हैं। आज भी आवकारी को प्रदेश के राजस्व का मुख्य स्रोत मानने वाले लोग अपनी भूमिका तय करें तो अच्छा होगा।
नशा नही रोजगार दो आन्दोलन के ही एक नायक सरकार की जिन्दल गु्रप के साथ पहाडी जमीन की बन्दरबाट के विरुद्ध आन्दोलन में सरकार और माफिया साजिश के शिकार हो जेल में हैं। उत्तराखण्ड के जल-जंगल-जमीन से लडने वाले नायकों मुकाबला सत्ता के उन दलालों से है जो सातवें दशक में लीसा-लकडी, उसके बाद शराब और अब जमीन के लिए चुनौती भी है कि आजीवन जनता के लिए लडने वाले लोग और आजीवन सत्ता की राजनीति का यह मुकाबला जनता के दम पर ही जीता जा सकेगा। जनता की जीत का सिपाही यदि कैद में हो तो जिम्मेदारी बडी हो गयी है, ये महसूसना होगा।

साभार http://gairsainsamachar09.blogspot.in/

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