खाता न बही, हरीश रावत और सीताराम केसरी

By Atul Sati/WatchDog/ “खाता ना बही जो हरीश रावत कहे वही सही “ ये स्थाई राजधानी के सन्दर्भ में उवाचे मुख्यमंत्री जी ! यही जुमला जोशीमठ में मेला उद्घाटन पर यहाँ के विधायक चिंगारी जी पर चिपकाए कि खाता ना बही जो ई कह दें उही सही ! सुनते हैं ये ही जुमला लाल कुआं में दुर्गापाल जी जी पर चेप देते हैं ! और भी जगह ये उहाँ के स्थानीयों पर कट पेस्ट होता रहा है ! अबके इसे अखिल उत्तराखंडीय बना दिए कि खाता बही का झंझट पूरा उत्तराखंड में ही खतम मांन लिया जाए ! कहते हैं जमाने पहले कांग्रेस के खजांची हुआ करते थे सीता राम केसरी जी !कांग्रेस के लिए फण्ड जुगाड़ने का जिम्मा उनका ही था ,उनके लिए ही ये जूमला इस्तेमाल हुआ करता था ! तब इसके मायने केसरी जी की इमानदारी के सन्दर्भ में प्रयुक्त होते होंगे ! किन्तु मुखमंत्री जिस तरह और जिस जिस के लिए इसका इस्तेमाल किये उससे इसका मतलब व सन्दर्भ पूरा उलट गया है !अब इसका मतलब निकलता है हमसे हिसाब किताब की बात तो करो मती ! बाकी जो करो सो कल्यो ….बन पड़े तो …! इक केंदर में जुमले बाज आये तो खरबूजे को देख के इनने भी रंग बदले !उनकी जो हो रही कच्ची वो सामने है इनका भी सतरा होना ई होना ठैरा …..!

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